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न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है | शाही शायरी
na to KHauf roz-e-jaza ka ho wahi ishq hai

ग़ज़ल

न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है

अमीता परसुराम 'मीता'

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न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
न मलाल रद्द-ए-दुआ का हो वही इश्क़ है

मैं हूँ आईना तिरा अक्स है मेरी रूह में
कोई दायरा न अना का हो वही इश्क़ है

नहीं आरज़ू मिरी आरज़ू को सुने ख़ुदा
असर आरज़ू में बला का हो वही इश्क़ है

न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
न सवाल अहद-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है