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आजिज़ मातवी शायरी | शाही शायरी

आजिज़ मातवी शेर

10 शेर

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में 'आजिज़' रुकती न थी मौज-ए-अश्क-ए-रवाँ
अंजाम अब इन ख़ुश्क आँखों से इक अश्क निकलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी




एक हम हैं हम ने कश्ती डाल दी गिर्दाब में
एक तुम हो डरते हो आते हुए साहिल के पास

आजिज़ मातवी




हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास
कारवाँ गोया पहुँचने वाला है मंज़िल के पास

आजिज़ मातवी




हो बिजलियों का मुझ से जहाँ पर मुक़ाबला
या-रब वहीं चमन में मुझे आशियाना दे

आजिज़ मातवी




होता है महसूस ये 'आजिज़' शायद उस ने दस्तक दी
तेज़ हवा के झोंके जब दरवाज़े से टकराते हैं

आजिज़ मातवी




इंसान हादसात से कितना क़रीब है
तू भी ज़रा निकल के कभी अपने घर से देख

आजिज़ मातवी




महव-ए-हैरत हूँ ख़राश-ए-दस्त-ए-ग़म को देख कर
ज़ख़्म चेहरे पर हैं या है आईना टूटा हुआ

आजिज़ मातवी




मैं जिन को अपना कहता हूँ कब वो मिरे काम आते हैं
ये सारा संसार है सपना सब झूटे रिश्ते-नाते हैं

आजिज़ मातवी




मुंतज़िर हूँ मैं कफ़न बाँध के सर से 'आजिज़'
सामने से कोई ख़ंजर नहीं आया अब तक

आजिज़ मातवी