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हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास | शाही शायरी
hasraten aa aa ke jama ho rahi hain dil ke pas

ग़ज़ल

हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास

आजिज़ मातवी

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हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास
कारवाँ गोया पहुँचने वाला है मंज़िल के पास

बीच में जब तक थीं मौजें उन में शोरिश थी बहुत
इंतिशार उन में हुआ जब आ गईं साहिल के पास

नज़्र-ए-क़ातिल जान जब कर दी तो बाक़ी क्या रहा
अब तड़पने के अलावा है ही क्या बिस्मिल के पास

ग़र्क़ कर दें मेरी कश्ती फिर ये मौजें देखना
हश्र तक पटका करेंगी अपना सर साहिल के पास

भीक देना तो कुजा कासा भी उस ने ले लिया
मैं अब इक हसरत-ज़दा हूँ क्या है मुझ साइल के पास

एक हम हैं हम ने कश्ती डाल दी गिर्दाब में
एक तुम हो डरते हो आते हुए साहिल के पास

ख़ैर हो 'आजिज़' कहीं ऐसा न हो दिल डूब जाए
इश्क़ के दरिया में हलचल हो रही है दिल के पास