अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया
फ़रियाद आज़र
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया
फ़ाज़िल जमीली
अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना
तो फिर ज़मीं पर ये आसमाँ का वजूद किस क़हर के लिए है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ
ये ज़हर इतने दिनों से मेरे वजूद में कैसे पल रहा है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं
हादी मछलीशहरी
अब कोई ढूँड-ढाँड के लाओ नया वजूद
इंसान तो बुलंदी-ए-इंसाँ से घट गया
कालीदास गुप्ता रज़ा