मैं दर-गुज़रा साहिब-सलामत से भी
ख़ुदा के लिए इतना बरहम न हो
ख़्वाजा अमीनुद्दीन अमीन
सुनाते हो किसे अहवाल 'माहिर'
वहाँ तो मुस्कुराया जा रहा है
माहिर-उल क़ादरी
बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
याद आई मिरे ईसा को दवा मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
हम तिरी राह में जूँ नक़्श-ए-क़दम बैठे हैं
तू तग़ाफ़ुल किए ऐ यार चला जाता है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल
मुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर
शकील बदायुनी
ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक
मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे
शकील बदायुनी
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
काम ख़ामोशी से मैं ने भी लिया फ़रियाद का
वहशत रज़ा अली कलकत्वी