तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
जब तुम्हें हम सलाम करते हैं
आबरू शाह मुबारक
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तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम
कि यूँ फेंका जुदा मुझ से फड़कती मछली को जल सीं
आबरू शाह मुबारक
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हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस ने
जो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया
अहमद राही
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उस ने सुन कर बात मेरी टाल दी
उलझनों में और उलझन डाल दी
अज़ीज़ हैदराबादी
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पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल
वो बुत बन गए हैं सुने जाएँगे
बेख़ुद देहलवी
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सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
कह दिया उस ने कि फिर हम क्या करें
बेख़ुद देहलवी
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उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
कहाँ का तजाहुल कहाँ का तग़ाफ़ुल
बेख़ुद देहलवी