EN اردو
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का | शाही शायरी
maine mana kaam hai nala dil-e-nashad ka

ग़ज़ल

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

;

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
है तग़ाफ़ुल शेवा आख़िर किस सितम-ईजाद का

हाए वो दिल जो हदफ़ था नावक-ए-बेदाद का
दर्द सहता है वही अब ग़फ़लत-ए-सय्याद का

नर्गिस-ए-मस्ताना में कैफ़ियत-ए-जाम-ए-शराब
क़ामत-ए-राना पे आलम मिस्रा-ए-उस्ताद का

माना-ए-फ़रियाद है कुछ तब्अ की अफ़्सुर्दगी
कुछ सुकूत-आमोज़ है पास-ए-अदब सय्याद का

इस क़दर दिलकश रहा तेरा अगर अंदाज़-ए-जौर
ज़ख़्म-ए-दिल मुँह चूम लेगा ख़ंजर-ए-बेदाद का

मजलिस-ए-मातम बनी आने से उन के बज़्म-ए-ऐश
पड़ गया फूलों में मेरे ग़ुल मुबारकबाद का

तू न कर तर्क-ए-सितम ज़ालिम सितम हो जाएगा
जाँ से जाएगा ख़ूगर लज़्ज़त-ए-बेदाद का

दर्द-ए-नाकाम-ए-हुजूम-ए-आरज़ू का है मआल
तल्ख़ी-ए-हसरत नतीजा शौक़-ए-उल्फ़त-ज़ाद का

हसरत-अफज़ा है बहुत मेरे दिल-ए-वीराँ का जाल
कौन है फ़रमाँ-रवा इस मुल्क-ए-ग़ैर-आबाद का

लुत्फ़ ही आता रहा है सई-ए-बातिल में मुझे
है यहाँ अफ़्सोस किस को मेहनत-ए-बर्बाद का

खींच कर ले चल मुझे शौक़-ए-असीरी सू-ए-दाम
काम ऐसा कर कि जिस से जी बढ़े सय्याद का

किस को शिकवा हिज्र का और किस को हसरत वस्ल की
लुत्फ़-परवर्दा है मेरा दिल किसी की याद का

ये अदा-ए-दिल-रुबायाना ये अंदाज़-ए-हया
किस तरह फिर काम करती है नज़र जल्लाद का

'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
काम ख़ामोशी से मैं ने भी लिया फ़रियाद का