सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना
उबैदुल्लाह अलीम
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अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ
परवीन शाकिर
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता
प्रेम भण्डारी
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
साहिर लुधियानवी
रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है 'ज़ौक़'
औलाद से तो है यही दो पुश्त चार पुश्त
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ता क़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न
वली मोहम्मद वली