डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया
ऐतबार साजिद
ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
तब नज़र आती है इक मिस्रा-ए-तर की सूरत
अमीर मीनाई
सादा समझो न इन्हें रहने दो दीवाँ में 'अमीर'
यही अशआर ज़बानों पे हैं रहने वाले
अमीर मीनाई
सौ शेर एक जलसे में कहते थे हम 'अमीर'
जब तक न शेर कहने का हम को शुऊर था
अमीर मीनाई
शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'
सौ बोतलों का नश्शा है इस वाह वाह में
अमीर मीनाई
वही रह जाते हैं ज़बानों पर
शेर जो इंतिख़ाब होते हैं
अमीर मीनाई
'असग़र' ग़ज़ल में चाहिए वो मौज-ए-ज़िंदगी
जो हुस्न है बुतों में जो मस्ती शराब में
असग़र गोंडवी