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शेर शायरी | शाही शायरी

शेर

34 शेर

कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़




ज़िंदगी भर की कमाई यही मिसरे दो-चार
इस कमाई पे तो इज़्ज़त नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़




ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
अपने बच्चे बेचना 'इक़बाल-साजिद' छोड़ दे

इक़बाल साजिद




अशआ'र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं

जाँ निसार अख़्तर




हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए

जाँ निसार अख़्तर




हमारे शेर को सुन कर सुकूत ख़ूब नहीं
बयान कीजिए इस में जो कुछ तअम्मुल हो

जोशिश अज़ीमाबादी




'कैफ़' यूँ आग़ोश-ए-फ़न में ज़ेहन को नींद आ गई
जैसे माँ की गोद में बच्चा सिसक कर सो गया

कैफ़ अहमद सिद्दीकी