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सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना | शाही शायरी
suKHan mein sahl nahin jaan nikal kar rakhna

ग़ज़ल

सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना

उबैदुल्लाह अलीम

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सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना

खुला कि इश्क़ नहीं है कुछ और इस के सिवा
रज़ा-ए-यार जो हो अपना हाल कर रखना

उसी का काम है फ़र्श-ए-ज़मीं बिछा देना
उसी का काम सितारे उछाल कर रखना

उसी का काम है इस दुख-भरे ज़माने में
मोहब्बतों से मुझे माला-माल कर रखना

बस एक कैफ़ियत-ए-दिल में बोलते रहना
बस एक नश्शे में ख़ुद को निहाल कर रखना

बस एक क़ामत-ए-ज़ेबा के ख़्वाब में रहना
बसा एक शख़्स को हद्द-ए-मिसाल कर रखना

गुज़रना हुस्न की नज़्ज़ारगी से पल-भर को
फिर उस को ज़ाइक़ा-ए-ला-ज़वाल कर रखना

किसी के बस में नहीं था किसी के बस में नहीं
बुलंदियों को सदा पाएमाल कर रखना