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दिल में जो बात खटकती है दहन तक पहुँचे | शाही शायरी
dil mein jo baat khaTakti hai dahan tak pahunche

ग़ज़ल

दिल में जो बात खटकती है दहन तक पहुँचे

कमाल अहमद सिद्दीक़ी

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दिल में जो बात खटकती है दहन तक पहुँचे
ख़ामुशी मरहला-ए-अर्ज़-ए-सुख़न तक पहुँचे

महरम-ए-हुस्न-ए-बहाराँ तो नहीं हो सकती
वो नज़र सिर्फ़ जो गुल-हा-ए-चमन तक पहुँचे

ज़िंदगी नाम इसी मौज-ए-मय-ए-नाब का है
मय-कदे से जो उठे दार-ओ-रसन तक पहुँचे

गुल्सितानों का इजारा नहीं फ़स्ल-ए-गुल पर
फ़स्ल-ए-गुल वो है जो हर दश्त-ओ-दमन तक पहुँचे

अहद हम ने भी किया था न मिलेंगे उस से
बार-हा हम भी उसी अहद-शिकन तक पहुँचे

बात करता है ब-ज़ाहिर बड़ी सादा सी 'कमाल'
जो सुख़न-वर हैं वही उस के सुख़न तक पहुँचे