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मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं | शाही शायरी
main rona chahta hun KHub rona chahta hun main

ग़ज़ल

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास

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मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
और इस के बअ'द गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं

तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं

ये कच्ची मिट्टियों का ढेर अपने चाक पर रख ले
तिरी रफ़्तार का हम-रक़्स होना चाहता हूँ मैं

तिरा साहिल नज़र आने से पहले इस समुंदर में
हवस के सब सफ़ीनों को डुबोना चाहता हूँ मैं

कभी तो फ़स्ल आएगी जहाँ में मेरे होने की
तिरी ख़ाक-ए-बदन में ख़ुद को बोना चाहता हूँ मैं

मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
तुम्हारे साथ मिल कर ख़ुद को धोना चाहता हूँ मैं