रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है
अहमद मुश्ताक़
तू ने ही तो चाहा था कि मिलता रहूँ तुझ से
तेरी यही मर्ज़ी है तो अच्छा नहीं मिलता
अहमद मुश्ताक़
भरी दुनिया में फ़क़त मुझ से निगाहें न चुरा
इश्क़ पर बस न चलेगा तिरी दानाई का
अहमद नदीम क़ासमी
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िंदगी भर का रत-जगा है
अहमद नदीम क़ासमी
कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई
अहमद राही
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
निकला जो हर्फ़ मुँह से वो अफ़्साना हो गया
अहसन मारहरवी
जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
जिस ने हम को प्यार किया वो सामने वाली मूरत है
ऐतबार साजिद