ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई
हादी मछलीशहरी
उस दुश्मन-ए-वफ़ा को दुआ दे रहा हूँ मैं
मेरा न हो सका वो किसी का तो हो गया
हफ़ीज़ बनारसी
हाए कोई दवा करो हाए कोई दुआ करो
हाए जिगर में दर्द है हाए जिगर को क्या करूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
कोई चारह नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
हफ़ीज़ जालंधरी
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वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
मिरे ख़यालों में रंग भर दे मिरे लहू को शराब कर दे
हफ़ीज़ जालंधरी
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भूल ही जाएँ हम को ये तो न हो
लोग मेरे लिए दुआ न करें
हसरत मोहानी
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ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा
हयात लखनवी