इलाही क्या खुले दीदार की राह
उधर दरवाज़े बंद आँखें इधर बंद
लाला माधव राम जौहर
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इस क़मर को कभी तो देखेंगे
तीस दिन होते हैं महीने के
लाला माधव राम जौहर
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न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है
लाला माधव राम जौहर
उस को देखा तो ये महसूस हुआ
हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले
महमूद शाम
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कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस
हम ने दीदार की गदाई की
मीर तक़ी मीर
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आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए
शुजा ख़ावर
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