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दीदार शायरी | शाही शायरी

दीदार

27 शेर

इलाही क्या खुले दीदार की राह
उधर दरवाज़े बंद आँखें इधर बंद

लाला माधव राम जौहर




इस क़मर को कभी तो देखेंगे
तीस दिन होते हैं महीने के

लाला माधव राम जौहर




न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है

लाला माधव राम जौहर




उस को देखा तो ये महसूस हुआ
हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले

महमूद शाम




कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस
हम ने दीदार की गदाई की

मीर तक़ी मीर




आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर