मेरी आँखें और दीदार आप का
या क़यामत आ गई या ख़्वाब है
आसी ग़ाज़ीपुरी
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तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं
अहमद फ़राज़
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हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं
अमीर मीनाई
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वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में
अमीर मीनाई
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जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
अनवर शऊर
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देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत
असअ'द बदायुनी
मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी
जल्वों के इज़दिहाम ने हैराँ बना दिया
असग़र गोंडवी
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