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उस को तकते भी नहीं थे पहले | शाही शायरी
usko takte bhi nahin the pahle

ग़ज़ल

उस को तकते भी नहीं थे पहले

महमूद शाम

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उस को तकते भी नहीं थे पहले
हम भी ख़ुद्दार थे कितने पहले

उस को देखा तो ये महसूस हुआ
हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले

दिल नज़र आते हैं अब आँखों में
कितने गहरे थे ये चश्मे पहले

खोए रहते हैं अब उस की धुन में
जिस को तकते न थे पहले पहले

हम को पहचान लिया करते थे
ये तिरे शहर के रस्ते पहले

अब उजालों में भटक जाते हैं
वो समझाते थे अँधेरे पहले

अब न अल्फ़ाज़ न एहसास न याद
इतने मुफ़्लिस न हुए थे पहले

रंग के जाल में आते न कभी
पास से देख जो लेते पहले

गर्म हंगामा-ए-काग़ज़ है यहाँ
बे-महक फूल कहाँ थे पहले