दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए
इन तलव्वुन-मिज़ाजियों का शिकार
कोई मेरे सिवा न हो जाए
लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार ही न रहे
कहीं वादा वफ़ा न हो जाए
तेरी रफ़्तार ऐ मआज़-अल्लाह
हश्र कोई बपा न हो जाए
कामयाबी ही कामयाबी हो
तो ये बंदा ख़ुदा न हो जाए
मेरी बेताबियों से घबरा कर
कोई मुझ से ख़फ़ा न हो जाए
कुछ तो अंदाज़ा-ए-जफ़ा कीजिए
दिल सितम-आश्ना न हो जाए
कहीं नाकामी-ए-असर आख़िर
मुद्दआ-ए-दुआ न हो जाए
वो निगाहें न फेर लें 'अख़्तर'
इश्क़ बे-आसरा न हो जाए
ग़ज़ल
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
अलीम अख़्तर