ज़ख़्म-ए-दिल को तसल्लियाँ दे दो
मेरे फूलों को तितलियाँ दे दो
सच को तुम क़त्ल कर न पाओगे
चाहे जितनी गवाहियाँ दे दो
चाँद तारे शफ़क़ धनक आकाश
इन दरीचों को कुंजियाँ दे दो
ग़ज़लें बे-कैफ़ हो रही हैं मिरी
अपने होंटों की सुर्ख़ियाँ दे दो
क्या करोगे निशानियाँ रख कर
इन हवाओं को छुट्टियाँ दे दो
हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई
आ भी जाओ तसल्लियाँ दे दो
ज़ुल्फ़ भी है तुम्हारा 'नासिर' भी
जो न हल हों पहेलियाँ दे दो
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल को तसल्लियाँ दे दो
नासिर जौनपुरी