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बहार शायरी | शाही शायरी

बहार

41 शेर

बहारों की नज़र में फूल और काँटे बराबर हैं
मोहब्बत क्या करेंगे दोस्त दुश्मन देखने वाले

कलीम आजिज़




बहार आई गुलों को हँसी नहीं आई
कहीं से बू तिरी गुफ़्तार की नहीं आई

कालीदास गुप्ता रज़ा




आएँगे वक़्त-ए-ख़िज़ाँ छोड़ दे आई है बहार
ले ले सय्याद क़सम रख दे गुलिस्ताँ सर पर

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ
अब तवक़्क़ो नहीं रिहाई की

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




टुक देख लें चमन को चलो लाला-ज़ार तक
क्या जाने फिर जिएँ न जिएँ हम बहार तक

मीर हसन




किया हंगामा-ए-गुल ने मिरा जोश-ए-जुनूँ ताज़ा
उधर आई बहार ईधर गरेबाँ का रफ़ू टूटा

मीर मोहम्मदी बेदार




ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम