कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
हम तो चमन को छोड़ के सू-ए-क़फ़स चले
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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नई बहार का मुज़्दा बजा सही लेकिन
अभी तो अगली बहारों का ज़ख़्म ताज़ा है
शफ़क़त काज़मी
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ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
वर्ना फ़ौज-ए-बहार आवे है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायुनी
शग़ुफ़्तगी-ए-दिल-ए-कारवाँ को क्या समझे
वो इक निगाह जो उलझी हुई बहार में है
शकील बदायुनी
आमद आमद है ख़िज़ाँ की जाने वाली है बहार
रोते हैं गुलज़ार के दर बाग़बाँ खोले हुए
तअशशुक़ लखनवी