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टुक देख लें चमन को चलो लाला-ज़ार तक | शाही शायरी
Tuk dekh len chaman ko chalo lala-zar tak

ग़ज़ल

टुक देख लें चमन को चलो लाला-ज़ार तक

मीर हसन

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टुक देख लें चमन को चलो लाला-ज़ार तक
क्या जाने फिर जिएँ न जिएँ हम बहार तक

क़िस्मत ने दूर ऐसा ही फेंका हमें कि हम
फिर जीते-जी पहुँच न सके अपने यार तक

ले जाऊँ अब मैं याँ से कहाँ अपना आशियाँ
दुश्मन है इस चमन में मिरा ख़ार ख़ार तक

दस्त-ए-सितम दराज़ किया जब जुनून ने
छोड़ा न मेरे पास गरेबाँ का तार तक

फिर भी टुक इतना उस को तू कह दीजियो सबा
जावे अगर हमारे तग़ाफ़ुल-शिआर तक

जीने की सूरत उस की ठहरती है कोई दम
इस वक़्त में भी पहुँचो जो उस बे-क़रार तक

कह इस ज़मीं में एक ग़ज़ल और भी 'हसन'
है तेरी तब्अ कहने पर अब तो हज़ार तक