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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
दर-ए-मय-ख़ाना पे बिछता है मुसल्ला अपना

आग़ा अकबराबादी




ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए
अपने दामन को लहू से मिरे भर जाने दे

आग़ा अकबराबादी




रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
हराम-ज़ादा था अच्छा हुआ हलाल हुआ

आग़ा अकबराबादी




रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
दैर अपना है न काबा न कलीसा अपना

आग़ा अकबराबादी




सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
बुतों का ज़िक्र ख़ुदा की किताब में देखा

आग़ा अकबराबादी




शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
मुदाम आबिद-ए-शब-ज़िंदादार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी




शिकायत मुझ को दोनों से है नासेह हो कि वाइज़ हो
न समझा हूँ न समझूँ सर फिरा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी