किसी की आँख का तारा हुआ करते थे हम भी तो
अचानक शाम का तारा नज़र आया तो याद आया
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री
नींद आती है मगर जाग रहा हूँ सर-ए-ख़्वाब
आँख लगती है तो ये उम्र गुज़र जानी है
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री
तुम किसी संग पे अब सर को टिका कर सो जाओ
कौन सुनता है शब-ए-ग़म का फ़साना सर-ए-राह
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री
आँखों में लिए जल्वा-ए-नैरंग-ए-तमाशा
आई है ख़िज़ाँ जश्न-ए-बहाराँ से गुज़र के
अली जव्वाद ज़ैदी
अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है
आया हूँ जो उस बज़्म-ए-गुल-अफ़्शाँ से गुज़र के
अली जव्वाद ज़ैदी
अब न वो शोरिश-ए-रफ़्तार न वो जोश-ए-जुनूँ
हम कहाँ फँस गए यारान-ए-सुबुक-गाम के साथ
अली जव्वाद ज़ैदी
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
अली जव्वाद ज़ैदी

