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चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी | शाही शायरी
chaman mein wo faramoshi ka mausam tha main KHud ko bhi

ग़ज़ल

चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी

अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री

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चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी
ज़मीं पर बर्ग-ए-आवारा नज़र आया तो याद आया

अभी इक निस्बत-ए-दार-ओ-रसन का क़र्ज़ बाक़ी है
फ़राज़ जाह ओ मंसब से उतर आया तो याद आया

भुलाया गर्दिश-ए-अय्याम ने दस्त-ए-पिदर यूँ तो
मगर जब मोड़ कोई पुर-ख़तर आया तो याद आया

किसी की आँख का तारा हुआ करते थे हम भी तो
अचानक शाम का तारा नज़र आया तो याद आया

भरा बाज़ार था कुछ जिंस-ए-जाँ के दाम लग जाते
शहादत-गाह-ए-दुनिया से गुज़र आया तो याद आया