रंग-ए-महफ़िल से फ़ुज़ूँ-तर मिरी हैरानी है
पैरहन बाइस-ए-इज़्ज़त है न उर्यानी है
नींद आती है मगर जाग रहा हूँ सर-ए-ख़्वाब
आँख लगती है तो ये उम्र गुज़र जानी है
और क्या है तिरी दुनिया में सिवा-ए-मन-ओ-तू
मिन्नत-ए-ग़ैर की ज़िल्लत है जहाँबानी है
चूम लो उस को इसी आलम-ए-मदहोशी में
आख़िर-ए-ख़्वाब वही बे-सर-ओ-सामानी है
अपने सामाँ में तसावीर-ए-बुताँ हैं ये ख़ुतूत
कुछ लकीरें हैं कफ़-ए-दस्त है पेशानी है
ग़ज़ल
रंग-ए-महफ़िल से फ़ुज़ूँ-तर मिरी हैरानी है
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री