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फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ | शाही शायरी
furaat-e-chashm mein ek aag si lagata hua

ग़ज़ल

फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ

अख़्तर रज़ा सलीमी

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फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ
निकल रहा है कोई अश्क मुस्कुराता हुआ

पस-ए-गुमान कई वाहिमे झपटते हुए
सर-ए-यक़ीन कोई ख़्वाब लहलहाता हुआ

गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं
गुनाह करता हुआ नेकियाँ कमाता हुआ

ब-सू-ए-दश्त-ए-गुमाँ दे रहा है इज़्न-ए-सफ़र
कनार-ए-ख़्वाब सितारा सा झिलमिलाता हुआ