हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
महफ़िल सुख़न की गूँज उठी वाह वाह से
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
नाला पुर-शोर हो और ज़ोरों पे फ़रियाद रहे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
नाला पुर-शोर हो और ज़ोरों पे फ़रियाद रहे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद
जिस को आज़ाद करो तुम कभी आज़ाद न हो
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
उस से मिलने की तमन्ना देखिए
वहशत रज़ा अली कलकत्वी