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आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए | शाही शायरी
aap apna ru-e-zeba dekhiye

ग़ज़ल

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
या मुझे महव-ए-तमाशा देखिए

शौक़ को हंगामा-आरा देखिए
कारोबार हसरत-अफज़ा देखिए

रंग-ए-गुलज़ार-ए-तमन्ना देखिए
दिलकशी-हा-ए-तमाशा देखिए

हुस्न है सौ रंग में तहसीं-तलब
दीदा-ए-हैराँ से क्या क्या देखिए

बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
देखना पड़ता है क्या क्या देखिए

हसरत आँखों में है लब ख़ामोश हैं
शेवा-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना देखिए

हाए रे ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-जमाल
ख़ुद तमाशा हूँ तमाशा देखिए

आप ने फिर कर न देखा इस तरफ़
हो गया ख़ून-ए-तमन्ना देखिए

उठती हैं नज़रें मिरी किस शौक़ से
मुझ को हँगाम-ए-तमाशा देखिए

हसरतों का हाए रे दिल में हुजूम
आरज़ूओं का नतीजा देखिए

सज्दे को बेताब होती हैं जबीं
शोख़ी-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा देखिए

मैं हूँ उस साक़ी का दीवाना जिसे
देखिए जब मस्त-ए-सहबा देखिए

ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
उस से मिलने की तमन्ना देखिए

कहते हैं कर लेंगे उस काफ़िर को राम
हज़रत-ए-'वहशत' का दावा देखिए