क्यूँ शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-साक़ी है लबों पर
पीना है तो ख़ुद बढ़ के पियो बादा-गुसारो
वाहिद प्रेमी
मैं औरों को क्या परखूँ आइना-ए-आलम में
मुहताज-ए-शनासाई जब अपना ही चेहरा है
वाहिद प्रेमी
मैं औरों को क्या परखूँ आइना-ए-आलम में
मुहताज-ए-शनासाई जब अपना ही चेहरा है
वाहिद प्रेमी
मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ
मेरे गिरने से बहुत लोग सँभल जाते हैं
वाहिद प्रेमी
न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
तमाम रात जले शम-ए-अंजुमन की तरह
वाहिद प्रेमी
न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
तमाम रात जले शम-ए-अंजुमन की तरह
वाहिद प्रेमी
राह-ए-तलब की लाख मसाफ़त गिराँ सही
दुनिया को मैं जहाँ भी मिला ताज़ा-दम मिला
वाहिद प्रेमी