शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
उठी तो आह मगर आह बे-असर उट्ठी
वाहिद प्रेमी
शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
उठी तो आह मगर आह बे-असर उट्ठी
वाहिद प्रेमी
शख़्सिय्यत-ए-फ़नकार मुअ'म्मा नहीं 'वाहिद'
फ़न ही में हुआ करता है फ़नकार का परतव
वाहिद प्रेमी
उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ
अपने वतन में दूर हैं अहल-ए-वतन से हम
वाहिद प्रेमी
उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ
अपने वतन में दूर हैं अहल-ए-वतन से हम
वाहिद प्रेमी
वो और हैं किनारों पे पाते हैं जो सुकूँ
हम को क़रार मिलता है तूफ़ाँ की गोद में
वाहिद प्रेमी
भला वो ख़ातिर-ए-आज़ुर्दा की तस्कीन क्या जानें
जिन्हों ने ख़ुद-नुमाई ख़ुद-परस्ती ज़िंदगी भर की
वहीदुद्दीन सलीम