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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
हक़ बात सर-ए-दार कहो सोचते क्या हो

वाहिद प्रेमी




हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
हुजूम-ए-दर्द से पाया है हौसला मैं ने

वाहिद प्रेमी




हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
हुजूम-ए-दर्द से पाया है हौसला मैं ने

वाहिद प्रेमी




इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर
मुझ को आईना कहो और उन्हें तस्वीर कहो

वाहिद प्रेमी




का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा का तजस्सुस क्यूँ हो
जब मिरे क़ल्ब ही में मेरा ख़ुदा है यारो

वाहिद प्रेमी




का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा का तजस्सुस क्यूँ हो
जब मिरे क़ल्ब ही में मेरा ख़ुदा है यारो

वाहिद प्रेमी




कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'
वो अपने नाज़ में हम अपने बाँकपन में रहे

वाहिद प्रेमी