किसी का मिलना, बिछड़ना और एक दो बातें
तमाम सिलसिला ज़ेब-ए-क़लम न कर पाया
तालिब हुसैन तालिब
किसी का मिलना, बिछड़ना और एक दो बातें
तमाम सिलसिला ज़ेब-ए-क़लम न कर पाया
तालिब हुसैन तालिब
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या? ख़ून-ए-जिगर के सामने
अहल-ए-दुनिया हेच हैं अहल-ए-हुनर के सामने
तालिब हुसैन तालिब
मैं चाँद भेज रहा हूँ कि तुम को देख आए
तुम्हारे शहर में अब शाम हो गई होगी
तालिब हुसैन तालिब
मैं चाँद भेज रहा हूँ कि तुम को देख आए
तुम्हारे शहर में अब शाम हो गई होगी
तालिब हुसैन तालिब
फिर मिरा ध्यान ज्ञान टूट गया
फिर तिरी भूक मारती है मुझे
तालिब हुसैन तालिब
लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है
वक़्त ख़ुशबू है बिखरता ही चला जाता है
तनवीर अहमद अल्वी