अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
किसी की राह में काँटे न रखना
ताबिश मेहदी
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अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
आरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं
ताबिश मेहदी
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अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
आरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं
ताबिश मेहदी
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देर तक मिल के रोते रहे राह में
उन से बढ़ता हुआ फ़ासला और मैं
ताबिश मेहदी
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फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
वो तेरे शहर में रुस्वा बहुत है
ताबिश मेहदी
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फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
वो तेरे शहर में रुस्वा बहुत है
ताबिश मेहदी
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हम को ख़बर है शहर में उस के संग-ए-मलामत मिलते हैं
फिर भी उस के शहर में जाना कितना अच्छा लगता है
ताबिश मेहदी
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