तिरी अबरू है मेहराब-ए-मोहब्बत
नमाज़-ए-इश्क़ मेरे पर हुई फ़र्ज़
सिराज औरंगाबादी
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तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह
इस प्रेम गली कूँ इंतिहा नईं
सिराज औरंगाबादी
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तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह
इस प्रेम गली कूँ इंतिहा नईं
सिराज औरंगाबादी
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
हुआ मेरे गले का हार मोहन
सिराज औरंगाबादी
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वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रिब का
चाँद रुख़ लब शफ़क़ है गेसू शाम
सिराज औरंगाबादी
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वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रिब का
चाँद रुख़ लब शफ़क़ है गेसू शाम
सिराज औरंगाबादी
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वस्ल के दिन शब-ए-हिज्राँ की हक़ीक़त मत पूछ
भूल जानी है मुझे सुब्ह कूँ फिर शाम की बात
सिराज औरंगाबादी
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