पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
जारी मिरे अश्क की नदी है
सिराज औरंगाबादी
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पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
जारी मिरे अश्क की नदी है
सिराज औरंगाबादी
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पेच खा खा कर हमारी आह में गिर्हें पड़ीं
है यही सुमरन तिरी दरकार कोई माला नहीं
सिराज औरंगाबादी
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क़ातिल ने अदा का किया जब वार उछल कर
मैं ने सिपर-ए-दिल कूँ किया ओट सँभल कर
सिराज औरंगाबादी
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क़ातिल ने अदा का किया जब वार उछल कर
मैं ने सिपर-ए-दिल कूँ किया ओट सँभल कर
सिराज औरंगाबादी
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रोज़ा-दारान-ए-जुदाई कूँ ख़म-ए-अबरू-ए-यार
माह-ए-ईद-ए-रमज़ां था मुझे मालूम न था
सिराज औरंगाबादी
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सनम किस बंद सीं पहुँचूँ तिरे पास
हज़ारों बंद हैं तेरी क़बा के
सिराज औरंगाबादी
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