तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
हुआ मेरे गले का हार मोहन
तसव्वुर कर तिरा हुस्न-ए-अरक़-नाक
मिरी आँखें हैं गौहर-बार मोहन
दम-ए-आख़िर तलक हूँ काफ़िर-ए-इश्क़
हुआ तार-ए-नफ़स ज़ुन्नार मोहन
बिरह का जान कुंदन है निपट सख़्त
दिखा इस वक़्त पर दीदार मोहन
हमारे मुसहफ़-ए-दिल की क़सम खा
किया है ज़ुल्म का इंकार मोहन
गुल-ए-आरिज़ कूँ तेरे याद कर कर
हुआ है दिल मिरा गुलज़ार मोहन
'सिराज' आतिश में है तेरे फ़िराक़ों
बुझा जा महर सीं यक बार मोहन
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
सिराज औरंगाबादी