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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन | शाही शायरी
tumhaari zulf ka har tar mohan

ग़ज़ल

तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

सिराज औरंगाबादी

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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
हुआ मेरे गले का हार मोहन

तसव्वुर कर तिरा हुस्न-ए-अरक़-नाक
मिरी आँखें हैं गौहर-बार मोहन

दम-ए-आख़िर तलक हूँ काफ़िर-ए-इश्क़
हुआ तार-ए-नफ़स ज़ुन्नार मोहन

बिरह का जान कुंदन है निपट सख़्त
दिखा इस वक़्त पर दीदार मोहन

हमारे मुसहफ़-ए-दिल की क़सम खा
किया है ज़ुल्म का इंकार मोहन

गुल-ए-आरिज़ कूँ तेरे याद कर कर
हुआ है दिल मिरा गुलज़ार मोहन

'सिराज' आतिश में है तेरे फ़िराक़ों
बुझा जा महर सीं यक बार मोहन