आज मेरी इक ग़ज़ल ने उस के होंटों को छुआ
आज पहली बार अपनी शाइ'री अच्छी लगी
सिराज फ़ैसल ख़ान
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बिछड़ जाएँगे हम दोनों ज़मीं पर
ये उस ने आसमाँ पर लिख दिया है
सिराज फ़ैसल ख़ान
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बिछड़ जाएँगे हम दोनों ज़मीं पर
ये उस ने आसमाँ पर लिख दिया है
सिराज फ़ैसल ख़ान
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चाँद बैठा हुआ है पहलू में
क़तरा क़तरा पिघल रहा हूँ मैं
सिराज फ़ैसल ख़ान
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चाँद बैठा हुआ है पहलू में
क़तरा क़तरा पिघल रहा हूँ मैं
सिराज फ़ैसल ख़ान
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दश्त जैसी उजाड़ हैं आँखें
इन दरीचों से ख़्वाब क्या झांकें
सिराज फ़ैसल ख़ान
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दिल की दीवार पर सिवा उस के
रंग दूजा कोई चढ़ा ही नहीं
सिराज फ़ैसल ख़ान
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