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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख

सिराज औरंगाबादी




नज़र आता नहीं मुझ कूँ सबब क्या
मिरा नाज़ुक बदन हैहात हैहात

सिराज औरंगाबादी




नज़र आता नहीं मुझ कूँ सबब क्या
मिरा नाज़ुक बदन हैहात हैहात

सिराज औरंगाबादी




नज़र-ए-तग़ाफ़ुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं करूँ बयाँ
कि शराब-ए-सद-क़दह आरज़ू ख़ुम-ए-दिल में थी सो भरी रही

सिराज औरंगाबादी




नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
या अँधारा इस क़दर था या उजाला हो गया

सिराज औरंगाबादी




नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
या अँधारा इस क़दर था या उजाला हो गया

सिराज औरंगाबादी




नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
न कर हम पुख़्ता-मग़्ज़ों सीं ख़याल-ए-ख़ाम ऐ वाइ'ज़

सिराज औरंगाबादी