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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले कर
सफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने

सिराज औरंगाबादी




मुवाफ़क़त करे क्यूँ मय-कशों सती ज़ाहिद
इधर शराब उधर मस्जिद-ओ-मुसल्ला है

सिराज औरंगाबादी




न मिले जब तलक विसाल उस का
तब तलक फ़ौत है मिरा मतलब

सिराज औरंगाबादी




न मिले जब तलक विसाल उस का
तब तलक फ़ौत है मिरा मतलब

सिराज औरंगाबादी




नहीं बख़्शी है कैफ़िय्यत नसीहत ख़ुश्क ज़ाहिद की
जला देव आतिश-ए-सहबा सीं इस कड़बी के पोले कूँ

सिराज औरंगाबादी




नहीं बुझती है प्यास आँसू सीं लेकिन
करें क्या अब तो याँ पानी यही है

सिराज औरंगाबादी




नहीं बुझती है प्यास आँसू सीं लेकिन
करें क्या अब तो याँ पानी यही है

सिराज औरंगाबादी