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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
ख़ून-ए-आशिक़ हलाल करता है

सिराज औरंगाबादी




मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
ख़ून-ए-आशिक़ हलाल करता है

सिराज औरंगाबादी




मुझ कूँ हर आन तिरे दर्द सीं बहबूदी है
इश्क़-बाज़ी में रुख़-ए-ज़र्द ज़र-ए-सूदी है

सिराज औरंगाबादी




मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
ऐ सब्ज़ शाल वाले ऊदे रुमाल वाले

सिराज औरंगाबादी




मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
ऐ सब्ज़ शाल वाले ऊदे रुमाल वाले

सिराज औरंगाबादी




मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन
'राँझा' के नसीबों में कहाँ 'हीर' की आवाज़

सिराज औरंगाबादी




मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले कर
सफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने

सिराज औरंगाबादी