मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
ख़ून-ए-आशिक़ हलाल करता है
सिराज औरंगाबादी
मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
ख़ून-ए-आशिक़ हलाल करता है
सिराज औरंगाबादी
मुझ कूँ हर आन तिरे दर्द सीं बहबूदी है
इश्क़-बाज़ी में रुख़-ए-ज़र्द ज़र-ए-सूदी है
सिराज औरंगाबादी
मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
ऐ सब्ज़ शाल वाले ऊदे रुमाल वाले
सिराज औरंगाबादी
मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
ऐ सब्ज़ शाल वाले ऊदे रुमाल वाले
सिराज औरंगाबादी
मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन
'राँझा' के नसीबों में कहाँ 'हीर' की आवाज़
सिराज औरंगाबादी
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले कर
सफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने
सिराज औरंगाबादी