रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा
अकबर मासूम
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तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ
तिरे लहू से भी दामन है दाग़दार मिरा
अकबर मासूम
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उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में
हमारी ख़ाक से लाया गया है
अकबर मासूम
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वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
अकबर मासूम
अक़्ल वालों में है गुज़र मेरा
मेरी दीवानगी सँभाल मुझे
अखिलेश तिवारी
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बे-सबब कुछ भी नहीं होता है या यूँ कहिए
आग लगती है कहीं पर तो धुआँ होता है
अखिलेश तिवारी
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हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
अखिलेश तिवारी
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