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सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया | शाही शायरी
sun! hijr aur visal ka jadu kahan gaya

ग़ज़ल

सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया

अकबर मासूम

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सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया
मैं तो कहीं नहीं था मगर तू कहाँ गया

जब ख़ेमा-ए-ख़याल में तस्वीर है वही
वो दश्त-ए-ना-मुराद वो आहू कहाँ गया

बिस्तर पे गिर रही है सियह आसमाँ से राख
वो चाँदनी कहाँ है वो मह-रू कहाँ गया

जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका
पर दिल से दर्द आँख से आँसू कहाँ गया

फिर ख़ाक उड़ रही है मकान-ए-वजूद में
ऐ जान-ए-बे-क़रार वो दिल-जू कहाँ गया