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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
तूँ तूँ मिलने की मिरे दिल में हवस आती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
याद अहद-ए-शबाब आवे है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




नज़र में उस की जो चढ़ता है सो जीता नहीं बचता
हमारा साँवला उस शहर के गोरों में काला है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ने काबा की हवस न हवा-ए-कुनिश्त है
देखा तो दोनों जाए वही संग-ओ-ख़िश्त है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
मिरे चेहरे उपर की शाह-ए-ख़ूबाँ ने नज़र सानी

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम