क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
इस को जाने है पाँव के तोड़े
सब ने मोड़ा है मुँह ख़ुदा न करे
तेरी तरवार हम से मुँह मोड़े
तेरे कूचे में सर शहीदों के
हैं पड़े जैसे बाट के रोड़े
ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
दिल कोई टूटा किस तरह जोड़े
एक परवाज़ में दिखाऊँ पर
जो वो सय्याद मेरे तईं छोड़े
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
वर्ना बहतेरे हैं पथर फोड़े
हर घड़ी हम को आज़माना क्या
चाहने वाले और हैं थोड़े
क़त्ल करता है तू जो 'हातिम' को
कौन उठावेगा तेरे नकतोड़े
ग़ज़ल
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम