हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम
चराग़ भी न जलाए चराग़ से कोई
शहज़ाद अहमद
हर दम तिरी शबीह थी आँखों के सामने
तन्हा भी हम नहीं थे तिरे साथ भी न थे
शहज़ाद अहमद
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
वो बहारें थीं कि अब के बाग़ में रस्ता न था
शहज़ाद अहमद
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
वो बहारें थीं कि अब के बाग़ में रस्ता न था
शहज़ाद अहमद
हौसला है तो सफ़ीनों के अलम लहराओ
बहते दरिया तो चलेंगे इसी रफ़्तार के साथ
शहज़ाद अहमद
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
शहज़ाद अहमद
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
शहज़ाद अहमद