घबरा के आसमाँ की तरफ़ देखती थी ख़ल्क़
जैसे ख़ुदा ज़मीन पे मौजूद ही न था
शहज़ाद अहमद
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गोशा-ए-दिल की ख़मोशी का तमन्नाई मैं
और हंगामे उठा लाया है बाज़ार से तू
शहज़ाद अहमद
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गोशा-ए-दिल की ख़मोशी का तमन्नाई मैं
और हंगामे उठा लाया है बाज़ार से तू
शहज़ाद अहमद
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गुज़र ही जाएगी 'शहज़ाद' जो गुज़रनी है
सँभालने से तबीअत कहाँ सँभलती है
शहज़ाद अहमद
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गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने
शहज़ाद अहमद
गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने
शहज़ाद अहमद
हैराँ हूँ हासिदों को पता कैसे चल गया
उन वलवलों का जो मेरे दिल में अभी न थे
शहज़ाद अहमद
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