हम अपने हाल पर ख़ुद रो दिए हैं
कभी ऐसी भी हालत हो गई है
शहज़ाद अहमद
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हम अपने हाल पर ख़ुद रो दिए हैं
कभी ऐसी भी हालत हो गई है
शहज़ाद अहमद
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हम दो क़दम भी चल न सके ख़ाक-ए-पा हुए
जो क़ाफ़िले के साथ गए जाने क्या हुए
शहज़ाद अहमद
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हम जो दस्तक कभी देते थे सबा की मानिंद
आप दरवाज़ा-ए-दिल खोल दिया करते थे
शहज़ाद अहमद
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हम जो दस्तक कभी देते थे सबा की मानिंद
आप दरवाज़ा-ए-दिल खोल दिया करते थे
शहज़ाद अहमद
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हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं
ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे
शहज़ाद अहमद
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हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम
चराग़ भी न जलाए चराग़ से कोई
शहज़ाद अहमद
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