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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

दश्त में कैसी दीवारें
मजनूँ किस का हम-साया

शहज़ाद अहमद




दश्त में कैसी दीवारें
मजनूँ किस का हम-साया

शहज़ाद अहमद




दीवार किस तरफ़ से बढ़े कुछ ख़बर नहीं
है बे-शुमार शहरों में जंगल घिरा हुआ

शहज़ाद अहमद




दिल भी तो इक दयार है रौशन हरा-भरा
आँखों का ये चराग़ बुझा और देख ले

शहज़ाद अहमद




दिल भी तो इक दयार है रौशन हरा-भरा
आँखों का ये चराग़ बुझा और देख ले

शहज़ाद अहमद




दिल ओ निगाह का ये फ़ासला भी क्यूँ रह जाए
अगर तू आए तो मैं दिल को आँख में रख लूँ

शहज़ाद अहमद




दिल पर भी आओ एक नज़र डालते चलें
शायद छुपे हुए हों यहीं दिन बहार के

शहज़ाद अहमद